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झूठ ई भंवै / ओम पुरोहित कागद

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कुण कैवै
अर क्यूं कैवै
झूठ रै नीं हुवै पग?

झूठ ई भंवै
भव में
चोगड़दै
ढूकै
सांच सूं पै ली।