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फड़फड़ाना / रामेश्वर दयाल श्रीमाली
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तुम्हारे लोह-पिंजर में
मैं तो सिर्फ फड़फड़ाया था
तुम ने तो उसी को समझ लिया
बगावत
और काट ली मेरी गर्दन !
यह तो अच्छा हुआ
जो मौत की गंध जानता है
वह नहीं फसेगा
अब तुम्हारे पिंजरों में !
काट लो गर्दन
खुशी से काटो
शांति है मेरे मन को
गदर्न के कट जाने से !
कारण ?
बंद नहीं होगा
पिंजरों में पंछियों का फड़फड़ाना
जब तक मिट नहीं जाती
पिंजरों में फांसने की यह परंपरा !
अनुवाद : नीरज दइया