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किसी भी दीक्षान्त समारोह पर / अम्बिका दत्त

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आओ !
मैं तुम सब लोगों का स्वागत करता हूं
इस घर के आँगन के बाहरी दरवाज़े पर
जहाँ से / तुम
अभी-अभी
कहीं न कहीं
जाने के लिए
निकलने वाले हो
यह दरवाज़ा !
कि जिसके बाद शुरू होता है
एक आग का जंगल
यह जानकर भी / अब संभव नहीं है
तुम्हारा रूक पाना
तुम्हें बाँध नही सकती
कच्चे आँगन में गिरी
पकी निबोलियों की गँध
तुम्हारी कच्ची बाँस की टागों में
उग आई है / आँखें
तुम ढूँढने लगे हो आसमान / अपनी आँखों के लिए
या फिर तुम्हारे कंधे
महसूस करने लगे हैं
नए-नए उगने वाले पंखों की खुजलाहट

आओं !
मैं इस दरवाज़े की
पत्थर की देहरी पर गिरने वाले
तुम्हारे प्रथम चरण का स्वागत करता हूँ
आँखों के लिए ?
सचमुच मुझे कष्ट होता है
तुम्हें सूचना देते हुए
कि बाहर बहुत धुँधला है-आसमान !
दूर-दूर तक
कुहासा छाया हुआ है
ठेठ दिशाओं की जड़ों तक
मुझे तो शक लगता है
तुममें से कोई
ढूँढ भी पाए
एक फाँक रोशनी
मौसम विभाग की सूचना भी
जान लेना ज़रूरी है
"सूरज अभी कई दिनों तक
दिखाई देने के आसार नहीं है।"
लेकिन सबके बावजूद
तुम्हारा घर से निकलना
मुल्तवी नही किया जा सकता ।