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परस है लारै / ओम पुरोहित कागद
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खुदाई में
निकळ्यो है तो कांई
हाल जींवतो है
काळीबंगां सै’र
जिण भांत जींवतो है
हाल आपणै मन में
आपणौ बाळपणो
हाल
करावै उनमान
आपरी आबादी रो
आबादी री चै’ल-पै’ल रो
घरदीठ पड़ी
हरमेश काम आवण आळी
अरथाउ जिन्सां रो
जिन्सां माथै
माणसियो परस
परस रै लारै
मोह मनवार
सगळो कीं तो जींवतो है
काळीबंगा रै थेड़ में।