भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मर्यादा का मुखौटा / ईश्‍वर दत्‍त माथुर

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:45, 4 फ़रवरी 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ईश्‍वर दत्‍त माथुर |संग्रह= }} {{KKCatKavita‎}} <Poem> ये क्‍या …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ये क्‍या है,
जो मानता नहीं
समझता नहीं
समझना चाहता नहीं
कुछ कहता नहीं
कुछ कहना चाहता नहीं।
तुम इसे गफ़लत का नाम दो
मैं इसे मतलब का ।

तुम्‍हारा समर्पण, निष्‍ठा
कहीं मेरे स्‍वार्थ के शिकार तो नहीं
तुम्‍हारी अटूट श्रद्धा ने
मुझे न जाने क्‍या समझा है
लेकिन मैं अन्‍दर तक जब भी
झाँकता हूँ अपने गिरेबाँ में तो
नज़र आता है केवल
मेरा बौनापन
विकृत मानसिकता,

जिसे दिन के उजाले में
मैं ढाँपे रहता हूँ
मर्यादा के मुखौटे से
सामाजिक शिष्‍टाचार से ।