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सपने / भरत ओला

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यह
पाँच नम्बर सैक्टर का
लौंडा तो है नहीं
जो
‘बैंडिट क्वीन’
या
‘फायर’
देख पाएगा

अंतडियों की आग
तो बुझती नही
जलने से पहले
तीली बुझ गई
अब राख के ढेर में
चिंगारी ढूंढने की गुस्ताखी
क्या खाक कर पाएगा

जो कुछ चाहता है
सपने में कमाता है
दिहाड़ी में तो
फकत
पेट लिवाड़ी कर पाता है।