Last modified on 4 फ़रवरी 2011, at 14:57

सपने / भरत ओला

आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:57, 4 फ़रवरी 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=भरत ओला |संग्रह=सरहद के आर पार / भरत ओला}} {{KKCatKavita‎}} <Po…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)


यह
पाँच नम्बर सैक्टर का
लौंडा तो है नहीं
जो
‘बैंडिट क्वीन’
या
‘फायर’
देख पाएगा

अंतडियों की आग
तो बुझती नही
जलने से पहले
तीली बुझ गई
अब राख के ढेर में
चिंगारी ढूंढने की गुस्ताखी
क्या खाक कर पाएगा

जो कुछ चाहता है
सपने में कमाता है
दिहाड़ी में तो
फकत
पेट लिवाड़ी कर पाता है।