भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तेलंगन / मख़दूम मोहिउद्दीन

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:19, 4 फ़रवरी 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मख़दूम मोहिउद्दीन |संग्रह=बिसात-ए-रक़्स / मख़दू…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तेलंगन<ref>तेलंगाना की स्त्री</ref>

फिरने वाली खेत की मेड़ों पे बल खाती हुई ।
नर्मो शीरीं<ref>मीठा</ref> क़हक़हों के फूल बरसाती हुई ।
कंगनों से खेलती औरों से शरमाती हुई ।
        अजनबी को देखकर ख़ामूश मत हो गाए जा
        हाँ, तेलंगन गाए जा, बाँकी तेलंगन गाए जा ।

अरज़<ref>धरती</ref> यकसरगोश<ref>सुनने के लिए तैयार</ref> है ख़ामूश है सब आसमाँ
राग सुनने रुक गए हैं बादलों के कारवाँ
हाँ, तराना छेड़, जंगल का मेरी गुंचा दहाँ<ref>कली-सा चेहरा</ref> ।
        अजनबी को देखकर ख़ामूश मत हो गाए जा
        हाँ, तेलंगन गाए जा, बाँकी तेलंगन गाए जा ।

देखने आते हैं तारे शब में सुन कर तेरा नाम
जल्वे सुबह-ओ-शाम के होते हैं तुझसे हमकलाम<ref>बातचीत</ref>
देख फ़ितरत कर रही है तुझको झुक-झुक कर सलाम ।
        अजनबी को देखकर ख़ामूश मत हो गाए जा
        हाँ, तेलंगन गाए जा, बाँकी तेलंगन गाए जा ।

दुख़्तरे पाकीज़गी<ref>पवित्रता की बेटी</ref> ना‍आशनाए<ref>अनजान</ref> सीम-ओ-ज़र<ref>चाँदी-सोना</ref> ,
दश्त<ref>जंगल</ref> की ख़ुद रौ कली<ref>अपने आप उगने वाली कली</ref> तहज़ीबे नौ<ref>नई सभ्यता</ref> से बेख़बर
तेरी ख़स की झोंपड़ी पर झुक पड़े सब बामो दर<ref>छत और दरवाज़े</ref> ।
        अजनबी को देखकर ख़ामूश मत हो गाए जा
        हाँ, तेलंगन गाए जा, बाँकी तेलंगन गाए जा ।

ले चला जाता हूँ आँखों मे लिए तस्वीर को
ले चला जाता हूँ पहलू में छिपाए तीर को
ले चला जाता हूँ फैला राग की तनवीर<ref>ज्योति</ref> को ।
        अजनबी को देखकर ख़ामूश मत हो गाए जा
        हाँ, तेलंगन गाए जा, बाँकी तेलंगन गाए जा ।

शब्दार्थ
<references/>