भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दु:ख की बात / लीलाधर जगूड़ी
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:24, 5 फ़रवरी 2011 का अवतरण
निरर्थकताओं को सार्थकताओं में बदलने के लिए
हम संघर्ष करते हैं
बदहालियों को ख़ुशहालियों में बदलने के लिए
हम संघर्ष करते हैं
क्योंकि कमियाँ जब अभाव बन जाती हैं
तो वे बीमारियाँ बन जाती हैं
कोई डाक्टर नहीं बताता कि क्या—क्या अभाव है किसी के जीवन में
वे सिर्फ़ उन जगहों के बारे में पूछते हैं
जो दुख रही होती हैं
या जानलेवा दर्द उठा रही होती हैं
मौत से फिर कभी हम बाद में मरते हैं
और फिर मौत को ही जिम्मेदार ठहराते हैं अपनी मौत का
आज शरीर विज्ञान में हो रहे अनुसंधान की एक ख़बर पढ़ी
कि उस दवा के सेवन से अब आदमी बूढ़ा नहीं होगा
यह कितने दु:ख की बात है कि आदमी जवान रहेगा और मर जाएगा ।