भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
किसे ख़बर थी तुझे इस तरह सजाऊँगा/ बशीर बद्र
Kavita Kosh से
वीनस केशरी (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:03, 6 फ़रवरी 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बशीर बद्र |संग्रह=उजाले अपनी यादों के / बशीर बद्…)
किसे ख़बर थी तुझे इस तरह सजाऊंगा
ज़माना देखेगा और मैं न देख पाऊंगा
हयातों मौत फ़िराक़ों विसाल सब यकजा
मैं एक रात में कितने दीये जलाऊंगा
पला बढ़ा हूँ अभी तक इन्हीं अंधेरों में
मैं तेज़ धूप से कैसे नज़र मिलाऊंगा
मेरे मिज़ाज की ये मादराना फितरत है
सवेरे सारी अज़ीयत मैं भूल जाऊँगा
तुम एक पेड़ से वाबस्ता हो मगर मैं तो
हवा के साथ बहुत दूर-दूर जाऊँगा
मिरा ये अहद है मैं आज शाम होने तक
जहाँ से रिज़क लिखा है वहीँ से लाऊंगा