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मैं आज भी अफ़सोस में हूँ / अनिल जनविजय
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मैं आज भी अफ़सोस में हूँ
रोष में हूँ
तुम आई थीं आशा लेकर
मौन होठों की भाषा लेकर
मुझसे चाहा था बस इतना
मेरा अंश परमाणु जितना
वो भी तुमको दे न पाया
मैं बेहद संकोच में हूँ
सोच में हूँ
आज वह अंश विस्फोटक होता
गर मेरे सामने औचक होता
होता यदि वह प्रतिलिपि तुम्हारी
उसे देख मैं भौंचक होता
पर अब है यह सपना-माया
शायद मैं कुछ जोश में हूँ
होश में हूँ ?
1997 में रचित