असिधार ज्योति की / दिनेश कुमार शुक्ल
इतना रखना याद
कि तुमको
कल फिर लिखनी हैं
कविताएं
कल तुमको
फिर से जीना है
तुमको इस
दिग्भ्रमित जगत के
क्षितिजों पर
फिर अंकित करनी
सभी दिशाएं
कल फिर लाना है
सूर्योदय
इसीलिये तुम
अंधकार घिरने के पहले
कहीं बचा कर
अंतस्तल में रख लेना
ये सारी राहें
ये सारे गन्तव्य
साथियों के चेहरे
पर्वत की मौन
विराट उपस्थिति
झरने की चपल कुलांच
गगन की नीलाभा
मेघों का गर्जन
गहराई मन की, सागर की
सूर्य चन्द्र तारे सारे
संचित कर लेना
कहीं बचा कर
सारी औषधियाँ
सारे विष
सारे फल खाद्यान्न,
उपकरण उद्यम यंत्र
ज्ञान विज्ञान और
जड़ जंगम सारे
संचित रखना
सारी भाषायें,
हाव-भाव मुद्रायें सारी
सारे दृढ़ निश्चल भय संशय
सारी इच्छायें आशायें
चिन्तायें सकल चराचर की
संचित रखना
भले भूल जाना
यह सब --
पर संचित रखना
बचपन की आँखों में जगती
निर्मल जल सी वह
दीप ज्योति
संचित रखना
वह
अंधकार को तार-तार
करने वाली
असिधार ज्योति की।