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पहाड़ की रेल / दिनेश कुमार शुक्ल

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कू-कू छिक्-छिक्

भीग रहा है लोहा पानी बरस रहा है
कू-कू छिक्-छिक्

जिस पहाड़ पर ये गाड़ी चढ़ने वाली है
उसके भीतर एक गुफा है
जिसमें किस्से भरे हुए हैं
कू-कू छिक्-छिक्

वो पहाड़ खुद बादल बन कर तैर रहा है
बचपन की आँखों के निर्मल आस्मान में
उड़ते कोयले के टुकड़ों से आँख बचाना
कू-कू छिक्-छिक्...