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एक कँगूरा / दिनेश कुमार शुक्ल
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सब कुछ बिखरा हुआ पड़ा है
ध्वस्त पड़ी है सारी निर्मिति
किन्तु बचा है एक कँगूरा
साबुत सीधा सधा हुआ जो
ताक रहा है आसमान को
अपनी आँखों की ताकत पर
साधे हैं दुनिया जहान को
आस्मान को
एक कँगूरा......
जाने किस माटी से निर्मित
जाने किन हाथों की रचना