Last modified on 10 फ़रवरी 2011, at 18:35

अनदेखा / दिनेश कुमार शुक्ल

Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:35, 10 फ़रवरी 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दिनेश कुमार शुक्ल |संग्रह=ललमुनिया की दुनिया / द…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

आँखे तो देख ही लेती हैं
औपचारिकता में छुपी हिंसा को
बेरूखी का हल्का से हल्का रंग
पकड़ लेती है आँख
फिर भी बैठे रहना पड़ता है
खिसियानी मुस्की लिए
छल कपट इर्ष्या भी
कहाँ छुप पाते हैं
आँखों से
सात पर्दों के भीतर से भी
आँख में लग ही जाता है धुआँ

कठिनाई ये है
कि अपनी ही आँखों का देखा
बहुत थोड़ा पहुँच पाता है हम तक
खुद हम ही रोक देते हैं उसे बीच में
अनदेखा करते जाना
जैसे जीने की शर्त हो