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पलक / दिनेश कुमार शुक्ल

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न तर्क न प्रमाण
तुम्हारी आभा में
तो जो है, सभी कुछ
टिका है, प्रतीक्षा के अधर में ...

जब टूटता है मौन तनी प्रत्यंचा-सा
हनाहन बाण लगते हैं हृदय पर

शब्द चुप हैं, अभी तो
बहुत गहरी नींद से तुम जागने को हो

तुम्हारी पलक काँपी है अभी तो.....