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वर्तमान / दिनेश कुमार शुक्ल

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चले जाने के निशानों के सिवा
और कुछ भी नहीं था वहाँ,
वहाँ इतना अधिक वर्तमान था
कि और किसी दूसरी चीज़ की न तो
अब ज़रूरत थी और न जगह

सब कुछ जा चुका था वहाँ से
था केवल प्रस्थान-प्रस्थान
प्रस्थान.....
और दूर तक फैला था समुद्र-सा
अपार वर्तमान !