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एक जगह / दिनेश कुमार शुक्ल

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वहाँ तक जाने में
कुंजर-पगडंडी भी डरती है

नाग और नागिन
जहाँ गुँथे हुए
सप्तावरण तक उठ-उठ जाते हैं

प्रेम नृत्य की हिंसा में
भस्म हो रहा है काल

अपनी अमरता में अभिशप्त
काली तलवारों का नाच
जहाँ जाने में
टुकड़े-टुकड़े हवा भी कट जायगी

हवा डरती है
वहाँ तक जाने में