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पान मसाला / दिनेश कुमार शुक्ल

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घना सन्नाटा, गरजता दैन्य
लाखों मक्खियों की
भिनभिनाती हुई दुपहर,
पिघलता डामर
पकड़ता तला जूते का.....

बन्द चालिस साल से है गेट
ऐल्गिन-मील का
बन्द सब कल-कारखाने कानपुर के
जहाँ देखो तहाँ
लटका बड़ा सा ताला......

प्रगति की लम्बी छलाँगे मारता
वो गया भारत

कहीं कोई तो नहीं अब
टोकने वाला
सभी के मुँह पड़ा ताला
मसाला पान का
हाय रे कैसा कसाला
कहो बेगम ! कहो लाल !