भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आदिम पदार्थ / दिनेश कुमार शुक्ल

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:50, 10 फ़रवरी 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दिनेश कुमार शुक्ल |संग्रह=ललमुनिया की दुनिया / द…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

गहरी गगन-गुफा के भीतर
आदिम और अनादि अग्नि में
जलता गलता और उबलता
रहता है आदिम पदार्थ ही

हम भी उसी पदार्थ के बने
हम भी उतने ही अनादि हैं
जितना कालातीत सृष्टि का
सबसे प्रथम खगोल-पिण्ड है

हम भी गलते ढलते रहते
त्रयतापों में और ढालते रहते
अपने संवेदन की द्रवित धातु से
अगणित प्रति-संसार!

वही तत्व उस सूरज में, उस निहारिका में
वही तत्त्व इस मसि-कागद में
वही तत्त्व इसको पढ़ने वाली आँखों की पुतली में है

पढ़ने वाली आँखें लेकिन
पढ़ कर ऐसा कुछ रचती हैं
जो अब तक इस सकल सृष्टि में
कहीं नहीं था!