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यह रात / अनिल जनविजय
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अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:01, 21 अक्टूबर 2007 का अवतरण
मैं हूँ, मन मेरा उचाट है
यह बड़ी विकट रात है
रात का तीसरा पहर
और जलचादर के पीछे झिलमिलाता शहर
ऊपर
लटका है आसमान काला
चाँद फीका फीका,
मय का खाली प्याला
मन में मेरे शाम से ही
तेरी छवि है
इतने बरस बाद आज फिर याद जगी है
आग लगी है
(2004)