भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
द्वारपाल / दिनेश कुमार शुक्ल
Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:14, 11 फ़रवरी 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दिनेश कुमार शुक्ल |संग्रह=आखर अरथ / दिनेश कुमार …)
वे अन्तःकरण के द्वारपाल हैं
अनुशासित विनयशील
तत्पर
सुन्दर सुशील सौम्य
बच्चों को देखते ही वे
मुस्कराते हैं......
बच्चों को देखकर
वे
क्यों
मुस्कराते हैं इतनी तीखी मुस्कान?
और क्या कहूँ इन बच्चों को
अभी उन्हें
डर की समझ नहीं है...
मृगशावक तो
पैदा होते ही
सूँघ लेता है
तीन मील दूर छिपे तीरन्दाज़ को
और बच निकलता है
आदमी के बच्चे को
सब कुछ ख़ुद ही सीखना पड़ता है-
जीवों के विकास क्रम की
यह भी
एक विडम्बना है...