ये दिन हैं अभी सुहाने / दिनेश कुमार शुक्ल
गगन के मन में
अचानक ही घटा उठ्ठेगी
घटा के साथ
चले आएँगे तमाम स्वप्न
सुधासिन्धु और एक नदी
बहुत ही हल्के-हल्के
बजता हुआ सात रंग का सरगम
तुम्हारी आँखों के
दोनों आकाश,
तमाम बिजलियों के गेंद
धान की लहरें,
और एक पंक्ति
हृदय-सी गहरी
किसी दिन यूँ ही
घटा उठ्ठेगी
ख़ुशी में
भर के भॅंवर नाचेगी
समेटेगी ख़ुद को
अपने गहन अर्थ की सघनता में
उठेंगी सजलता की वृत्त-सी लहरें
घटा उठ्ठेगी अवस
जानती है
खेत की भुलभुल में
अभी तपती हुई दूब की याद
अभी तो प्या स है
और लू के थपेड़े हैं
और दहशत है
बस एक घटाटोप-सा है
धूल भरी आँधी है
पड़ा है बिखरा हुआ
चूर-चूर सात रंग का सरगम
चलो उठाओ
चुनो एक-एक याद
सभी रंगों की
उठाओ फिर से
वो टूटी हुई आवाज़
गमकती थापें
वैसे भी अभी
धूल ही तो उड़नी थी
जो कदमताल करते हुए
वक़्त इधर से गुज़रा
बिखरा है जो
ये दिन हैं
उसे चुनने के
सुनो ये शान्त
हवा की धड़कन
ये दिन हैं अभी
सुनने के