भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
औरतें / अनिल जनविजय
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:09, 21 अक्टूबर 2007 का अवतरण
औरतें
शहरों की तरह होती हैं
जिन्हें
जितना ज़्यादा निकट से
तुम देखते हो
उन्हें
उतना ही कम
तुम जानते हो
(1998)