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लौट आओ / उपेन्द्र कुमार
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हम सब
लगातार
बन्द होठों के बीच
रहत हैं चीखते
लौट आओ
नीरवता में
आवाज़ देते हैं हम
धूप और बरसात की
मार सह
बदरंग हुए मौसमों को
लौट आओ
ढहती मुंडेरों
पर चढ़
पुकारते रहते हैं
चुपचाप
जवानों और बच्चों को
लौट आओ
लौट आओ
बन्द दरवाजों और खिड़कियों के बीच
जहाँ रखी है हमने
कुछ स्मृतियाँ
और हवा