उस समय भी
जब बतिया रहे होते हैं हम
अपने आप से
तो क्यों नहीं बोलते हैं
केवल सच?
ऐसी स्थितियों में
जब नहीं होता भाषा का बन्धन
संवाद या संप्रेषण हेतु
शब्द और अर्थ से/कोई भी खिलवाड़
हो जाता है बेमानी
होते हैं केवल बिम्ब
स्मृतियों और इच्छाओं के
संवादरत भविष्य से
संप्रेषणीयता जिनकी
निर्भर होती है
वर्तमान की सघनता पर
व्याकुल मन की आँच में
बर्फ बन जाते हैं
सोर अनुत्तरित प्रश्न
और सभी अवांछित उत्तर
होते हैं जब
संवादरत हम अपने आप से