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गोआ का चेहरा / उपेन्द्र कुमार

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मेरी डायरी के
कुछ पन्नों पर
फैला है समुद्र

ये वे दिन हैं
जब मैं समुद्र के पास गया था
उसे छुआ था
उसके साथ जिया था
उसे महसूस किया था
और उसके अन्दर घुस
निकाल लाया
खारे पानी से भींगे
कुछ पृष्ठ
बहुत दिनों बाद तक
सुखाता रहा था मैं जिन्हें
मैदानी हवाओं में

फेनिल लहरों से लेकर पानी तक के
स्पर्श से उत्तेजित मदमाते
नाचते गाते लोग
भरे पड़े हैं इन पृष्ठों में-
विदूषकों से रंगीन परिधानों में सुसज्जित
रंगीन लोग
भोंडे और अश्लील ढंग से
प्रसन्न लोग
जो न देखते हैं
न पहचानते हैं

सागर का तातत्य
या विक्षुब्ध लहरों का
सर पटकना बार-बार
पथरीले तटों पर

बहुत से रंग-बिरंगे फूल
इन पृष्ठों पर
सजे हैं
एक टहक पीला फूल
जो आ जाता था हर कहीं
मुझसे मिलने।
एक हल्का गुलाबी
खुशबू से भरपूर
मुस्कुराता फूल
जो सदा रहा मेरे साथ
जीवन को करता
वसंत-वसंत

आगे के बयान में
नाच-गाने
और खाने-पीने से बेहतर है कि
मैं आपको बताऊँ
उस चित्र की बात

चटख और हल्के
इन्द्रधनुषी रंगों के बीच
भूरे और मटमैले रंगों पर
सुनहरी रंग चढ़ा
बनाए गए उस चित्र की बात
जिसमें एक चेहरा
किसी बुढ़ाती औरत
या शायद
किसी जवान होती लड़की जैसा
विवाहिता अथवा कुमारी
ठीक पता नहीं चलता
आँखों में टँगी है किसी
चिर-कुमारी की खिसियाई-सी प्रतीक्षा
और होंठ ऐसे जो बस अभी
तुरंत सुनाने वाले हों-
कोई डिस्को नम्बर
या फिर एक लम्बा उदास गीत

यह चेहरा
डूबता है
डोना पाउला के प्रत्येक सूर्यास्त के
साथ
और उग आता है
प्रत्येक सूर्योदय के साथ