Last modified on 11 फ़रवरी 2011, at 16:35

सूखी नदी-सा / रमेश चंद्र पंत

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:35, 11 फ़रवरी 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रमेश चंद्र पंत }} {{KKCatNavgeet}} <poem> पुल हमें था जोड़ता जो …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

पुल हमें
था जोड़ता जो ढह गया !

बात थी
कुछ भी नहीं
थे स्वार्थ अंधे
व्यग्र थे उद्धत बहुत
हो उठे कंधे

एक सूनापन
है मन में, गड़ गया !

थे ग़लत
कोई नहीं
पर, कौन सुनता
बर्छियाँ ताने सभी थे
कौन झुकता

मन कहीं
सूखी नदी-सा हो गया !