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कई सहस्र स्वप्नों के बीच / अनिल जनविजय

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कई सहस्र

स्वप्नों के बीच

एक सपना वह

था नितान्त अपना वह


देखा मैंने--

धीरे से एक अणु उतरा

चिपक गया उससे आ डिम्ब

फिर उभरा उनके पीछे से

हम दोनों का मिश्रित प्रतिबिम्ब


(2000)