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बेपता घर में / चन्द्रकान्त देवताले
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एक-दूसरे के बिना न रह पाने
और ताज़िन्दगी न भूलने का खेल
खेलते रहे हम आज तक
हालाँकि कर सकते थे नाटक भी
जो हमसे नहीं हुआ
किंतु समय की उसी नोक पर
कैसे सम्भव हमेशा साथ रहना दो का
चाहे वे कितने ही एक क्यों न हों
तो बेहतर होगा हम घर बना लें
जगह के परे भूलते हुए एक-दूसरे को
भूल जाएँ ख़ुद ही को
ग़रज़ फ़क़त यह
कि बहुत जी लिए
इसकी-उसकी, अपनी-तुपनी करते परवाह
अब अपनी ही इज़ाज़त के बाद
बेमालूम तरीके से
अदृश्य होकर रहें हम
कोहरे के बेनाम-बेपता घर में