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काळजयी ! / कन्हैया लाल सेठिया

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दिप दिप दीपै जोत
अंधेरो के कहसी !
देसी निज रा पोत
कलख रो गढ़ ढहसी !

चोस सकै कद मौत
गीत रो रस बहसी,
घिसगी काळ करोत
सबद री जड़ रहसी !