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मेध गरजा। (प्रथम कविता का अंश) / चन्द्रकुंवर बर्त्वाल
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मेध गरजा। (प्रथम कविता का अंश)
मेध गरजा।
धोर नभ में मेध गरजा।
गिरी बरसा।
प्रलय रव से गिरी बरसा।
तोड शैलोें के शिखर,
बहा कर धारें प्रखर,
ले हजारों घने धुंधले निर्झरों को,
कह रही हैं वह नदी से
’उठ अरी उठ’
कई जन्मों के लिए तू आज भरजा,
मेध गरजा