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मोह भंग(कविता का अंश ) / चन्द्रकुंवर बर्त्वाल
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मोह भंग(कविता का अंश )
खुली आंख जब, ईश्वर के चरणों में आये,
रूप और आनन्द ज्ञान तब तुमने पाये।
करता हूं स्वीकार प्रभेा! मैं न्याय तुम्हारा ,
करता हूं स्वीकार ,बेडियां ये, यह कारा।
सभी दिशायें मित्र , शत्रु है आज न कोई,
पाप नहीं प्राणों में मेरे लाज न कोई,
कोई क्या सोचता न कुछ चिंता है इसकी,
वस्तु नहीं ऐसी मुझे चाह हो कुछ जिसकी।