भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

प्रेम जिजीविषा का विकास है / रमा द्विवेदी

Kavita Kosh से
Ramadwivedi (चर्चा) द्वारा परिवर्तित 21:42, 14 जून 2007 का अवतरण

यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

                 'प्रेम' दिल की पुकार है,,

ह्रिदय का विस्तार है,

स्वप्निल संसार है,

रस की फ़ुहार है,

तन-मन झूम जाता है,

गीत बन जाता है।

                'प्रेम' जिजीविषा का विकास है,,

जीवन का प्रकाश है,

अधरों का उल्लास है,

रागात्मकता का विलास है,

मन-मयूर नाच उठता है,
<br? गीत बन निखरता है।

                'प्रेम'मन का विश्वास है,,

जीवन की मिठास है,

तीखी तकरार है,

मीठी मनुहार है,

रोम-रोम लहलहाता है,

गीत बन जाता है।

                शूल कहीं चुभता है,,

मर्म चीख उठता है,

मीत याद आता है,

दर्द और भी बढ जाता है,

अन्तस गुनगुनाता है,

गीत बुन जाता है।

                बसन्त रितु का प्रसार,,

नवयौवना का विरह श्रुंगार,

प्रिय का इन्तज़ार,

विरहणी की अश्रुधार,

दर्द छलक जाता है,

गीत बन-संवर जाता है।