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शहर कमाकर/ शीलेन्द्र कुमार सिंह चौहान

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शहर कमाकर
शहर कमाकर जब हम लौटे
भैया अपने गांव
बदली बदली हमें दिखायी
दी बरगद की छांव।
भूले लोय कबड्डी सिर पर
चढ़ा क्रिकेट का भूत
दिन दिन घूम रहे हाथों में
बल्ला थामे पूत
राम लक्ष्मण में प्रधान पद
का हो रहा चुनाव।
भूल गये हुक्के की गुड़गुड़
बढ़ा चिलम का जोर
बलदाऊ पी पी शराब की
बोतल भे कमजोर,
पूरब टोला पश्चिम टोला
में है बड़ा तनाव।
फागुन आया चला गया पर
बजीं न झांझें ढोल।
हलो हाय के आगे फीके
पांय लगूं के बोल
एक दूसरे का हर कोई
काट रहा है पांव।
बदली बदली हमें दिखायी
दी बरगद की छांव।