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ग़ज़ल-1 / मुकेश मानस
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खुद से ही बेगाने हैं
दर्द भरे अफ़साने हैं
जब भी अपने भीतर झांका
तह्ख़ाने-तह्ख़ाने हैं
हमको धोखा देने वाले
सब जाने पहचाने हैं
अब भीतर का दिया जलालो
कदम-कदम वीराने हैं
1995