भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मानव हूं मैं / चन्द्रकुंवर बर्त्वाल

Kavita Kosh से
Dr. ashok shukla (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:10, 2 मार्च 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= चन्द्रकुंवर बर्त्वाल }} {{KKCatKavita}} <poem> '''मानव हूं मैं (…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मानव हूं मैं (कविता अंश)

मानव हूं मैं, सदा मुझे सुख मिल न सकेगा
पर मेरा दुख भी हे प्रभु! कटने वाला हो।
और मरण जब आवे, तब मेरी आंखों में
अश्रु न हों , मेरे ओठों में उजियाला हो।
(मानव हूं मैं कविता अंश)