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एक दोस्त (कविता का अंश) / चन्द्रकुंवर बर्त्वाल

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एक दोस्त (कविता का अंश)

इसी समय छोटा सा शब्द हुआ
थोड़ी सी छाय कांपी
एक शिला के भीतर
देखा एक छिपकली गरदन उंची कर
अनदेखा ला कर मुझको
बडे यत्न से देख रही है,
आंखों के कोरों से
टप- टप जबडों से
जने क्या कहती बुढिया की तरह हवा में
(एक दोस्त पृष्ठ 193)