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गुंजन / चन्द्रकुंवर बर्त्वाल

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गुंजन (कविता का अंश)

रोवेगी कवि के चुम्बन से,
अब सानन्द हिमानी।
फूट उठेगी अब गिरि- गिरि के,
उर की उन्मद वाणी।
(गुंजन कविता से )