Last modified on 5 मार्च 2011, at 11:50

घर और वन और मन / भवानीप्रसाद मिश्र

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:50, 5 मार्च 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=भवानीप्रसाद मिश्र |संग्रह=शरीर कविता फसलें और …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

हवा
मेरे घर का चक्कर लगाकर
अभी वन में चली जाएगी

भेजेगी मन तक
बाँस के वन में गुँजाकर
बाँसुरी की आवाज़
एक हो जाएँगे
इस तरह
घर और वन और मन

हवा का आना
हवा का जाना
गूँजना बंसी का स्वर !