भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मेध मुक्ता (कविता का अंश) / चन्द्रकुंवर बर्त्वाल

Kavita Kosh से
Dr. ashok shukla (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:47, 5 मार्च 2011 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मेध मुक्ता (कविता का अंश)
 
मैं मर जाऊंगा पर मेरे जीवन का आनन्द नहीं,
झर जायेंगें कुसुम पत्र तरू, पर मधु प्राण बसन्त नही ं
सच है धन -तम में खो जाते, सोत सुनहले दिन के
पर प्राची से झरने वाली आशा का तो अंत नहीं
/////////////////
जिस आशा से बीज धरा में छिप कर मिटता रहता।
(मेध मुक्ता कविता का अंश पृष्ठ 47)

)