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पीताभ किरन-पंछी / भवानीप्रसाद मिश्र
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दूसरे सारे पंछी
अपने सारे गीत
गा चुके हैं
रक्त और नील
सारे फूल
मेरे आँगन में आ चुके हैं
सुनाई नहीं दी
एक तुम्हारी ही बोली
ओ पीताभ किरण पंछी
ओ ठीक कविता की सहोदरा
फूल और गीत और धरा
सब जैसे धाराहत हैं इस घटना से
अनुक्षण रत हैं सब
तुम्हारी
प्रतीक्षा में !