यह जो हम 
दिन ब दिन
नीचे से नीचे की ओर
	जा रहे हैं
इससे स्पष्ट है
कि कहीं ऊंचाई से आ रहे हैं ।
ये ऊंचाई 
जो कि उजालों की ऊंचाई है ;
दरसल
हमारे ख्यालों की ऊंचाई है ।
और ये ख्याल
हमारे कवियों
साहित्यकारों के
खून पसीने की कमाई है ।
अनुवाद : नीरज दइया