भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

लक्ष्मण स्तुति/ तुलसीदास

Kavita Kosh से
Dr. ashok shukla (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:18, 6 मार्च 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=तुलसीदास |संग्रह=विनय-पत्रिका / तुलसीदास }} {{KKCatKavita}…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

लक्ष्मण स्तुति
(दण्डक)
37
लाल लाड़िले लखन, हित हौ जनके।
सुमिरे संकटहारी, सकल सुमंगलकारी,
पालक कृपालु अपने पनके।1।
धरनी-धरनहार भंजन-भुवनभार,
अवतार साहसी सहसफनके।।
सत्यसंध, सत्यब्रत, परम धरमरत,
 निरमल करम बचन अरू मनके।2।
रूपके निधान, धनु-बान पानि,
तून कटि, महाबीर बिदित, जितैया बड़े रनके।।
सेवक-सुख-दायक, सबल, सब लायक,
 गायक जानकीनाथ गुनगनके।3।
भावते भरतके, सुमित्रा-सीताके दुलारे,
चातक चतुर राम स्याम घनके।।
बल्लभ उरमिलाके, सुलभ सनेहबस,
 धनी धन तुलसीसे निरधनके।4।