विनय कर रही
(नारी के प्रति नवीन दृष्टिकोण )
कहा दयामय ईश्वर ने,
‘ओ पीड़ित नारी !
मुझे ज्ञात है व्यथा तुम्हारे उर की सारी,
तुम कल शाम नदी के
निर्जन तट पर जाना
प्रिय से मिलना
और हृदय की व्यथा मिटाना’
(विनय कर रही कविता का अंश)
विनय कर रही
(नारी के प्रति नवीन दृष्टिकोण )
कहा दयामय ईश्वर ने,
‘ओ पीड़ित नारी !
मुझे ज्ञात है व्यथा तुम्हारे उर की सारी,
तुम कल शाम नदी के
निर्जन तट पर जाना
प्रिय से मिलना
और हृदय की व्यथा मिटाना’
(विनय कर रही कविता का अंश)