भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
रामनाम की गोलियां / चन्द्रकुंवर बर्त्वाल
Kavita Kosh से
Dr. ashok shukla (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:50, 7 मार्च 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=चन्द्रकुंवर बर्त्वाल |संग्रह=कंकड-पत्थर / चन्द…)
रामनाम की गोलियां
(कविता व्यंग्य अंश)
(धार्मिक ढकोसलों पर व्यंग्य का उदाहरण)
जीवन भर फांस ग्राहकों को
अब बैठे हरि की पैढी पर
बूढे लाला भगवानदीन
मछलियां चुगाते खुश हो कर
मुंह में तुलसी की चौपाई
आंखों में स्वर्ग लोक के सुख
हाथ में गोलियां आटे की
हैं वही खुली दिल के सम्मुख