श्रीराम  स्तुति-
(राग गौरी)
(45)
श्रीरामचंद्र कृपालु भजु मन 
हरण भवभय दारूणं।
नवकंज लोचन ,कंज-मुख , 
कर-कंज पद कंजारूणं। 
कंदर्प अगणित अमित छवि, 
नवनील नीरद सुंदरं। 
पट पीत मानहु तड़ित रूचि शुचि 
नौमि जनक सुतावरं।। 
भजु दीनबंधु दिनेश 
दानव-दैत्य-वंश-निकंदनं। 
रघुनंद आनँदकंद कोशलचंद 
दशरथ-नंदनं।। 
सिर मुकुट कुंडल तिलक चारू 
उदारू अंग विभुषणं। 
आजानुभुज शर-चाप-धर, 
संग्राम-जित-खरदूषणं।। 
इति वदति तुलसीदास शंकर-
शेष-मुनि-मन-रंजनं। 
मम हृदय कंज निवास करू, 
कामादि खल दल गंजनं।।