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आशायें / चन्द्रकुंवर बर्त्वाल
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आशायें
(निराशा में भी आशा का चित्रण)
टअंग दीन हो गये और
मेरी आशायें क्षीण हुयी
ओ रवि ! मुझको अपनी किरणों में जागृति दो
शोभा दो और शक्ति दो
मुझे जगाओ जीवन के कर्तव्य क्षेत्र में
जहाँ बज्र- आधात सहे जाते हँस -हँस कर
जहाँ निराशायें
जीवन के आगे झुककर
बन जाती हैं आशाओं की भी आशायें
(आशायें कविता का अंश)