Last modified on 8 मार्च 2011, at 20:38

ऊँघता बैठा शहर / हरीश निगम

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:38, 8 मार्च 2011 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

धूप ने
ढाया कहर

फूल घायल
ताल सूखे
हैं हवा के बोल रूखे,
बो रहा मौसम
ज़हर

धूप ने
ढाया कहर

हर गली
हर मोड़ धोखे
बंद कर सारे झरोखे,
ऊँघता बैठा
शहर

धूप ने
ढाया कहर