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भइया बस्ते जी / हरीश निगम
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थोड़ा अपना वज़न घटाओ
भइया बस्ते जी।
हम बच्चों का साथ निभाओ
भइया बस्ते जी।
गुब्बारे से फूल रहे तुम
भरे हाथी से,
कुछ ही दिन में नहीं लगोगे
मेरे साथी से।
फिर क्यों ऐसा रोग लगाओ
भइया बस्ते जी।
कमर हमारी टूट रही है
कांधे दुखते हैं,
तुमको लेकर चलते हैं कम
ज़्यादा रूकते हैं।
कुछ तो हम पर दया दिखाओ
भइया बस्ते जी।