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फुनगियों तक बेल / हरीश निगम

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फुनगियों तक
बेल चढ़ आई!

बादलों को
टेरती
होती सिंदूरी
देह सौगंधों हरी
मन की मयूरी

इंद्रधनु के
पत्र पढ़ आई!

दूब-अक्षत
फूल खुशबू
धूप गाती
सप्तपदियाँ घोलती
पायल बजाती

नेह के
सौ बिंब गढ़ आई!